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उपन्यास का विषय क्षेत्र और विवेचन सागर के सदृश अतल और अथाह है। अतः उसका अथवा उसकी विद्या का अध्ययन भी कठिन है। मेरे लिए यह कार्य असंभव ही नहीं, अपितु दुस्साध्य भी था, फिर भी यह अल्प प्रयास आपके सामने प्रस्तुत है। व्यक्तिवादी उपन्यासों ने अनदेखे अनजाने रास्ते खोले हैं और व्यक्ति की असामान्य प्रवृत्तियों, मन, वचन व कर्म का वैषम्य, सुख-दुःख, हर्ष-विषाद को चित्रित किया है। व्यक्ति समाज में अपनी विशिष्टता बनाए रखने में प्रयत्नशील है और अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। विषम परिस्थितियों में भी अपने अस्तित्व को बचाकर रखना मेरी इस पुस्तक का उद्देश्य है। मेरी ऐसी मान्यता है कि पाठक भी इस पुस्तक को पढ़कर अधिकाधिक लाभान्वित हो सकेंगें।